By-Kumar Vishwas
एशिया के हम परिंदे , आसमा है हद हमारी ,
जानते है चाँद सूरज , जिद हमारी ज़द हमारी ,
हम वही जिसने समंदर की , लहर पर बाँध साधा ,
हम वही जिनके के लिए दिन , रात की उपजी न बाधा,
हम की जो धरती को माता , मान कर सम्मान देते ,
हम की वो जो चलने से पहले , मंजिले पहचान लेते ,
हम वही जो शून्य मैं भी , शून्य रचते हैं निरंतर ,
हम वही जो रौशनी रखते , है सबकी चौखटों पर ,
उन उजालो का वही , पैगाम ले आए है हम ,
हम है देसी हम है देसी हम है देसी ,
हा मगर हर देश छाए है हम…..
ज़िंदा रहने का असल अंदाज़ , सिखलाये है हमने ,
ज़िंदगी है ज़िंदगी के , बाद समझाया है हमने ,
हमने बतलाया की , कुदरत का असल अंदाज़ क्या है ,
रंग क्या है रूप क्या है , महक क्या है स्वाद क्या है ,
हमने दुनिया मोहबत , का असर ज़िंदा किया है ,
हमने नफरत को गले मिल , मिल के शर्मिंदा किया है ,
इन तरर्की के खुदाओं , ने तो घर को दर बनाया ,
इन पड़े खली मकानो , को हमी ने घर बनाया ,
हम न आते तो तरक्की , इस कदर न बोल पाती,
हम न आते तो ये दुनिया , खिड़किया न खोल पाती,
है यसोदा के यहाँ पर , देवकी जाये है हम ,
हम है देसी हम है देसी हम है देसी ,
हा मगर हर देश छाए है हम ……………
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